Sunday, July 7, 2013

ब्लास्ट के बाद, जागो रे...!

अजीब विडंबना है इस देश की..! यहां खतरे की घंटी खतरे के बाद बजती है। बोधगया में सीरियल ब्लास्ट हुए, इसके बाद देश भर के चुनिंदा राज्यों व शहरों में हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया। अपने-अपने तईं नेताओं ने भाषण शुरू कर दिए, सुरक्षा-व्यवस्था का जायजा लिया जाने लगा, जगह-जगह दर्शाया जाने लगा कि हम कितने सतर्क और जागरूक हैं?
यह सिलसिला पहली बार नहीं है, 1993 में हुए मुंबई बम धमाकों के बाद से हर बार रटे-रटाए डायलॉग सुनने में आने लगे। नेताओं की ओर से आतंकवाद को कड़ा जवाब देंगे, ऐसे हमले बर्दाश्त नहीं करेंगे, हमारी सुरक्षा-व्यवस्था मजबूत है, यहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता सरीखे वक्तव्य लोगों को भ्रमित करते आ रहे हैं। चैनलों-अखबारों में बहस चलाई जाती है, चर्चा-सत्र होते हैं, डिबेट चलाते हैं, कैंडल मार्च निकलते हैं, सरकार-प्रशासन को बाहर बैठे लोग जी-भरकर कोसते हैं, फिर धीरे-धीरे सब नॉर्मल हो जाता है। पब्लिक भी अपनी दिनचर्या में लग जाती है। ..और यह सब तब तक नॉर्मल रहता है, जब तक कि दोबारा कोई ब्लास्ट जैसी घटना नहीं हो जाती! 
आखिर, इस तरह के हाई अलर्ट घटना होने से पहले क्यों नहीं होते, क्या सिर्फ ब्लास्ट होने का इंतजार किया जाता है कि जब ऐसा कुछ होगा, तो हाई अलर्ट किया जाएगा और अगर हाई अलर्ट रहता है, तो घटनाएं क्यों होती हैं? क्या हमारा सुरक्षा तंत्र हमें चैन से सांस लेने का भी मौका नहीं दे सकता? अगर, सुरक्षा तंत्र फेल है, तो भ्रम में रखने के लिए बनावटी बातें करने का क्या मतलब? 

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