Monday, November 26, 2007

India in dilemma over Taslima

Taslima Nasreen, the exiled Bangladeshi Muslim woman writer, threatened by radical Islamists has become a victim of political ping-pong in India, bundled from one city to another in a controversy critics say has shamed the secular state.
Authorities rushed award-winning Nasreen, who criticises the use of religion as an oppressive force, from her home in Kolkata last week after protests against her by Muslim groups led to riots, forcing the army to be called in.
The riots appeared to be the culmination of years of simmering anger at Nasreen. Some radical Muslims hate Nasreen for saying Islam and other religions oppress women and Indian clerics had issued a "death warrant" against her in August.
After the riots, police moved her to a hotel in Rajasthan and then she was quickly sent to Delhi at the weekend under police protection. No one seemed to want her.
"Democratic we may be, but liberal we most certainly are not," wrote Karan Thapar in the Hindustan Times, criticising India for failing to defend freedom of expression enough.
The controversy highlights the delicate social faultlines of India, a nation born out of secular ideals 60 years ago but where communal politics still play a huge role.
Each move led to criticism that politicians were pandering to Muslim votes and were unwilling to take heat for defending her.

Friday, September 28, 2007

डंक मारते स्टिंग ऑपरेशन...!


पुलित्ज़र ने जब पीत पत्रकारिता की नीव डाली होगी तो, ये नहीं सोचा होगा कि आज के दौर में यह इतनी डिमांडेबल और विवादास्पद हो जाएगी।


अब चर्चा करते हैं पीत पत्रकारिता यानी येलो जर्नालिज्म की, पहले इन्हें सिर्फ भंडाफोड़ या पोल खोल कहा जाता था। न्यूज टीवी के आने के बाद इन्हें स्टिंग ऑपरेशन कहा जाने लगा और देखिए कि इनकी मार भी बिच्छु के जहरीले डंक से कम साबित नहीं हुई। देश के साठ साल के इतिहास में इतने भंडाफोड़ नहीं हुए होंगे, जितने अब एक महीने में हो जाते हैं। स्टिंग ऑपरेशन अब टीवी जर्नलिजम की जान बन गए हैं और उनके निशाने पर माफिया, नेता और अफसरशाह ही नहीं हैं, आम लोग भी हैं।


लेकिन बहुत से लोगों को अब लगने लगा है कि बात जरूरत से आगे बढ़ रही है। खास तौर से उमा खुराना के मामले के बाद उन सवालों की अनदेखी करना नामुमकिन हो गया है, जो इधर कुछ अरसे से उठने लगे थे। कुल मिलाकर इन दिनों सबसे ज्यादा जोर स्टिंग ऑपरेशन का है, ऐसे में क्या औचित्य है इन स्टिंग ऑपरेशन का...! आपके सुझाव भी आमंत्रित हैं...?


Tuesday, September 25, 2007

टाइटैनिक की चाभी ७२ लाख में नीलाम

लंदन, २५ सितंबर। टाइटैनिक और उससे जुड़ी हर चीज बेशकीमती मानी जाती है इसका एक ताजा उदाहरण ये है कि लंदन में एक चाभी जो टाइटैनिक से जुड़ी थी क़रीब ७२ हजार रूपए में नीलाम हुयी है इसके बारे में कहा जाता है कि अगर ये चाभी टाइटैनिक में मौजूद होती तो शायद जहाज नहीं डूबता ।

this is the team work...chak de...

Johannesburg, Sept. 25 : Having made history by winning the inaugural Twenty20 World Cup after a dream final against arch rivals Pakistan, Indian skipper Mahendra Singh Dhoni attributed the victory to the team work and the desire to do well.
"Whatever is destined to happen will happen. But I believe, unless your do the required hard work you don't achieve it.
"In this competition, we played a few games that went down to the wire. But everyone who has done well in those crunch games, when it mattered, will relish his performance for the team cause," Dhoni said on Monday.

Wednesday, August 8, 2007

गर्भधारण...बनाम स्त्री की निजता..!

सरकार की ओर से हाल में यह सुझाव आया है कि हर महिला अपने गर्भधारण का पंजीकरण अनिवार्यत: कराए। ऐसा करने का कारण हमारे समाज में बिगड़ता लिंगानुपात है। 2001 की जनगणना के आंकड़ों को पुष्ट करते हुए अलग-अलग राज्यों से अक्सर आंकड़े आते रहते हैं कि वहां गर्भ में बेटियों के मारे जाने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं।
सरकार के इस प्रस्ताव का कई महिलाओं एवं महिला संगठनों ने विरोध किया है। एक संगठन के मुताबिक महिलाएं अपने गर्भपात के अधिकार पर सरकारी कंट्रोल नहीं चाहतीं। तो एक अन्य संगठन के अनुसार अधिकतर महिलाओं का उनके शरीर पर नियंत्रण नहीं है और गर्भधारण व गर्भपात के रजिस्ट्रेशन को अनिवार्य कर सरकार उन्हें 'अपने शरीर पर अधिकार' से भी वंचित करना चाहती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि यह एक जटिल मसला है।
दरअसल, पंजीकरण के मुद्दे का दो दृष्टिकोण से विश्लेषण करना आवश्यक है। यह सही है कि गर्भपात महिलाओं का जरूरी एवं महत्वपूर्ण अधिकार है। इस अधिकार को महिलाओं ने लड़कर हासिल किया है। ऐसे में वह कितने बच्चे चाहती है और अगर अपने अनचाहे गर्भ की जिम्मेदारी वह नहीं लेना चाहती है तो यह अधिकार उसे मिलना ही चाहिए। लेकिन इस शर्त के साथ जो कुछ अन्य प्रश्न उठाए गए हैं उन पर गौर करना भी जरूरी है। मसलन, इसके चलते औरत की निजी जिंदगी में हस्तक्षेप की बात उठ रही है।
हमें नहीं भूलना चाहिए कि जब समाज औरतों को दबाने के लिए यह कहता था कि यह हमारा निजी या पारिवारिक मामला है तो नारी आंदोलन का जवाब था कि कुछ निजी नहीं होता, सत्तर के दशक में यह नारा दुनियाभर में गूंजा था 'निजी ही राजनीतिक है' (पर्सनल इज पॉलिटिकल) और वह बिल्कुल दुरुस्त बात थी। यदि आज कोई औरत यह कहे कि वह अपनी इच्छा से सती होना चाहती है तो क्या उसकी इस प्रकार की निजता स्वीकार्य हो सकती है? यौन केंद्रित गर्भपात को रोकने के लिए बनाए गए अधिनियम के तहत दक्षिण में गिरफ्तार कुछ महिलाओं के बारे में (जिन्हें अपनी कोख में पल रहे कन्याभ्रूण को खत्म करने के लिए दंडित किया गया था) बोलते हुए एक महिला संगठन के प्रतिनिधि ने रेखांकित किया था, चूंकि परिवार में औरत का कोई अधिकार नहीं है, इसलिए ऐसे मामलों में स्त्री पर नहीं बल्कि परिवार के दूसरे सदस्यों पर कार्रवाई होनी चाहिए। उनका कहने का तात्पर्य था औरत को इस बात के लिए मजबूर करने वाले, उस पर दबाव डालने वाले परिवार के अन्य सदस्यों को दंडित किया जाना चाहिए क्योंकि परिवार में स्त्री की राय की कोई अहमियत नहीं होती।
कल्पना करें कि सरकारी प्रस्ताव के तहत गर्भवती होने का पंजीकरण होता है तो ऐसे मामलों में चुपचाप गर्भपात होने की स्थिति में परिवार के अन्य सदस्यों की जवाबदेही भी बनेगी। हमारे देश में एक और बड़ी समस्या अभी तक बनी हुई है : गर्भसंबंधी कारणों से औरत की मृत्यु। आंकड़े बताते हैं कि एक लाख के आसपास की संख्या में महिलाएं हर साल गर्भ संबंधी बीमारियों के कारण मर जाती हैं। इस समस्या की जब चर्चा होती है तब सभी संगठनों की ओर से लगातार यह मांग उठाई जाती है कि जांच डॉक्टर की देखरेख में हो, तो स्त्री की जान को कम से कम खतरा हो सकता है। हम अंदाजा लगा सकते हैं कि हमारे यहां अधिक से अधिक 15 से 20 फीसदी स्त्रियां सरकारी या निजी अस्पतालों में प्रसूति के लिए जाती होंगी। अगर पंजीकरण होगा तो सरकार की भी यह जिम्मेदारी बनेगी कि वह उसकी निगरानी में या विशेषज्ञ चिकित्सकों की सुविधा प्रसूति के दौरान उपलब्ध कराए।
गर्भधारण के पंजीकरण का विरोध करने वालों की ओर से यह भी कहा गया है कि लिंगानुपात को ठीक करने के लिए लोगों को शिक्षित करना चाहिए तथा समाज में स्त्री-पुरुष भेदभाव को खत्म करने पर जोर देना चाहिए। अब जहां तक शिक्षित करने का सवाल है तो लगातार रिपोर्टें आई हैं कि गर्भ परीक्षण के जरिए लिंग की जांच कर कन्या भ्रूण को खत्म करने का सिलसिला अमीर तथा शिक्षित वर्ग में ही अधिक हो रहा है।
कई विकसित देशों में गर्भ ठहरते ही दोनों जीवनसाथी का प्रशिक्षण/काउंसिलिंग तथा मेडिकल देखरेख शुरू हो जाता है, जिसमें औरत की सेहत के साथ खिलवाड़ की संभावना कम रहती है। यह उस पर निर्भर करता है कि वह चाहे तो गर्भपात कराए और चाहे तो उसे पैदा करे। पंजीकरण से गर्भपात के अधिकार को छीने जाने की बात को अनिवार्यत: जोड़कर नहीं देखना चाहिए। यह जरूर है कि इस फैसले की आड़ में औरत से उसका गर्भपात का अधिकार छीनने का प्रयास होगा क्योंकि हमारा समाज कोई भी ऐसा मौका हाथ से नहीं निकलने देता, जिसमें औरत को कमतर बनाया जा सके। लेकिन हमें सतर्क रहकर उसका प्रतिरोध करना होगा।

Monday, July 30, 2007

नाबालिग का प्रेम और...बलात्कार..?

दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत ने एक युवक को एक नाबालिग लड़की के अपहरण और बलात्कार के आरोपों से मुक्त कर दिया है। इसके फैसले के पीछे अदालत ने कहा है कि ऐसा कोई कानून नहीं है कि 18 साल की उम्र से कम होने पर कोई प्यार नहीं कर सकता।

अदालत के मुताबिक किसी से प्रेम करना और उससे शादी करने की इच्छा रखना कोई अपराध नहीं है। किशोरी की उम्र 17 साल से अधिक है, लेकिन 18 साल से कम है। उसने अपने प्रेमी के साथ भाग कर मंदिर में शादी की और अब उसी के साथ रहना चाहती है।

कोर्ट का कहना है कि अगर कोई लड़का या लड़की एक-दूसरे से प्यार करते हैं और भाग कर शादी कर लेते हैं, तो शादी करने वाले युवक को केवल इसी आधार पर बलात्कार का दोषी नहीं ठहराया जा सकता कि लड़की नाबालिग है। देश के कानून में लड़की के विवाह के लिए उसकी उम्र कम से कम 18 साल होना जरूरी है।

अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि नाबालिग होने के बावजूद लड़की की भावनाओं का सम्मान करने और परिवार और समाज से उन्हें अनुचित ठहराए जाने से बचाव का हक है। जहांगीरपुरी में रहने वाली इस किशोरी ने अपने प्रेमी के साथ भाग कर बरेली के एक मंदिर में शादी कर ली थी। लड़की के माता-पिता की शिकायत पर पुलिस ने अपहरण और बलात्कार का मामला दर्ज कर लिया था और युवक को गिरफ्तार कर लिया था।
अदालत ने इस मामले पर नाखुशी जाहिर करते हुए कहा कि कई मामलों में अदालतों के स्पष्ट फैसलों के बावजूद इस युवक को करीब 4 महीने जेल में गुजारने पड़े। पति की गिरफ्तारी के बाद किशोरी को बाल गृह में रखा गया क्योंकि उसने अपने माता-पिता के साथ जाने से मना कर दिया था। लड़की के माता-पिता इस शादी के खिलाफ इसलिए थे कि लड़का किसी और जाति का है।

आज भी हमारे आस-पास ऐसी तमाम खबरें होती है, जिन्हें हम ध्यान नहीं देते है... आप अपने विचार हमें लिख भेजें...
आपका sarvesh...

Thursday, July 26, 2007

Poor, happy & hopeful

NEW DELHI : The world seems to be a happier place for people living in the developing world. Their incomes may be low and lives tough, but the mood is upbeat.
They are more satisfied with their personal lives, incomes and national conditions as compared to the developed world. And, they are optimistic about the future as well.
In fact, 64% Indians say the next generation will have a better quality of life, according to Global Opinion Trends 2002-2007, a survey conducted by the Pew Global Attitudes Project in 47 countries, involving 45,000 interviews.
This is in sharp contrast to the prevailing mood in many developed nations like the US, UK, Germany and France, where people are not overtly excited about the present - possibly because their per capita GDP gains have been less robust compared to many developing counties. They are not too enthusiastic about the future either - most have a negative feeling about the kind of life the next generation would lead.
The survey, the largest ever undertaken by Pew Global Attitudes Project, examines how people around the world view their lives and their future, their countries and national institutions, as well as their most pressing national problems.
In France, for example, 80% say that when their children grow up, they will be worse off than people are today। Smaller but substantial majorities in Germany, Japan, Italy, Great Britain, the US and Canada also are pessimistic regarding the next generation's overall prospects. Unlike in the developing world, satisfaction with national conditions is flat or has declined in most advanced nations where trends are available.
Compare this with Africa, where most people surveyed say their lives will be better five years from now. A majority also feels their children will grow up to be better off. This belief is widespread in other developing and emerging countries as well. In China, for instance, 86% of the respondents look ahead to a better life for their kids.
Nearly 41% Indians surveyed said they are satisfied with their own lives, while 42% said they are satisfied with the nation. And, here's the surprise: A whopping 77% Indians said they are satisfied with the government and leadership.
As for national problems, crime, political corruption, drugs, the spread of HIV/AIDS and other infectious diseases, and pollution emerge frequently as top issues in the survey. While crime is the dominant issue for most Asian and African countries, for Indians, pollution and terrorism are the biggest bug-bears. Eight out of 10 people in India see pollution as a major problem.

Wednesday, July 25, 2007

काली कलम से ...


मुम्बई, 26 july-

मित्रवर, यह ब्लाग उन स्नेहमय पत्रकारों को समर्पित है, जो मूलरूप से पत्रकारिता करते हुए भी पत्रकारिता का दंभ नहीं भरा करते। बल्कि, पूरी इमानदारी के साथ इस कर्मयोग में समाहित हो जाते हैं।

हालांकि, पत्रकारिता बहुत व्यापक शब्द है, और यह मुझ जैसों के समझने या समझाने के वश कि बात नहीं। लेकिन, आज के परिवेश में पत्रकारिता एक गाली सा बन गया है, जिसका सुख हर तथाकथित पत्रकार महसूस करना चाहता है। तात्पर्य यह है कि आज के इस वैश्विक युग में पत्रकारिता को अर्थशास्त्र ने छातिग्रस्त कर रखा है, जिसके अंतर्गत पत्र, पत्रकार और पत्रकारिता तीनों का ह्रास होता दिखायी दे रहा है।

एसे में, संचार माध्यमों से सम्बंधित हर शख्स खुद को मौका मिलने पर पत्रकार कहने से नहीं चूकता, भले ही वह संगठनात्मक तौर पर किसी भी तरह का काम करता हो और संभव है कि उसके कामों मे दलाली भी शामिल हो, जो वह इस त्याग्मयी काम के नाम पर करता हो।

आप सभी से इस बात कि अपेक्षा है, कि इस स्तम्भ के लिए कुछ बहुमूल्य सुझाव भेजें, जिससे मुझे इस कालम मे सुधार के साथ खुद के लिए मार्गदर्शन भी मिल सके और साथ ही इस कालम का कुशल सम्पादन संभव हो।

आपका ...

सर्वेश ...

Monday, July 16, 2007

ur's emotions

Sweet things are easy 2 buy,
but sweet people are difficult to find.

Life ends when u stop dreaming, hope ends when u stop believing,Love ends when u stop caring,Friendship ends when u stop sharing.

So share this with who ever u consider a friend.

To love without condition.............

to talk without intention.........

to give without reason............

andto care without expectation.......

is the heart of a truefriend.......

Sarvesh...