Wednesday, July 25, 2007

काली कलम से ...


मुम्बई, 26 july-

मित्रवर, यह ब्लाग उन स्नेहमय पत्रकारों को समर्पित है, जो मूलरूप से पत्रकारिता करते हुए भी पत्रकारिता का दंभ नहीं भरा करते। बल्कि, पूरी इमानदारी के साथ इस कर्मयोग में समाहित हो जाते हैं।

हालांकि, पत्रकारिता बहुत व्यापक शब्द है, और यह मुझ जैसों के समझने या समझाने के वश कि बात नहीं। लेकिन, आज के परिवेश में पत्रकारिता एक गाली सा बन गया है, जिसका सुख हर तथाकथित पत्रकार महसूस करना चाहता है। तात्पर्य यह है कि आज के इस वैश्विक युग में पत्रकारिता को अर्थशास्त्र ने छातिग्रस्त कर रखा है, जिसके अंतर्गत पत्र, पत्रकार और पत्रकारिता तीनों का ह्रास होता दिखायी दे रहा है।

एसे में, संचार माध्यमों से सम्बंधित हर शख्स खुद को मौका मिलने पर पत्रकार कहने से नहीं चूकता, भले ही वह संगठनात्मक तौर पर किसी भी तरह का काम करता हो और संभव है कि उसके कामों मे दलाली भी शामिल हो, जो वह इस त्याग्मयी काम के नाम पर करता हो।

आप सभी से इस बात कि अपेक्षा है, कि इस स्तम्भ के लिए कुछ बहुमूल्य सुझाव भेजें, जिससे मुझे इस कालम मे सुधार के साथ खुद के लिए मार्गदर्शन भी मिल सके और साथ ही इस कालम का कुशल सम्पादन संभव हो।

आपका ...

सर्वेश ...