Wednesday, August 8, 2007

गर्भधारण...बनाम स्त्री की निजता..!

सरकार की ओर से हाल में यह सुझाव आया है कि हर महिला अपने गर्भधारण का पंजीकरण अनिवार्यत: कराए। ऐसा करने का कारण हमारे समाज में बिगड़ता लिंगानुपात है। 2001 की जनगणना के आंकड़ों को पुष्ट करते हुए अलग-अलग राज्यों से अक्सर आंकड़े आते रहते हैं कि वहां गर्भ में बेटियों के मारे जाने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं।
सरकार के इस प्रस्ताव का कई महिलाओं एवं महिला संगठनों ने विरोध किया है। एक संगठन के मुताबिक महिलाएं अपने गर्भपात के अधिकार पर सरकारी कंट्रोल नहीं चाहतीं। तो एक अन्य संगठन के अनुसार अधिकतर महिलाओं का उनके शरीर पर नियंत्रण नहीं है और गर्भधारण व गर्भपात के रजिस्ट्रेशन को अनिवार्य कर सरकार उन्हें 'अपने शरीर पर अधिकार' से भी वंचित करना चाहती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि यह एक जटिल मसला है।
दरअसल, पंजीकरण के मुद्दे का दो दृष्टिकोण से विश्लेषण करना आवश्यक है। यह सही है कि गर्भपात महिलाओं का जरूरी एवं महत्वपूर्ण अधिकार है। इस अधिकार को महिलाओं ने लड़कर हासिल किया है। ऐसे में वह कितने बच्चे चाहती है और अगर अपने अनचाहे गर्भ की जिम्मेदारी वह नहीं लेना चाहती है तो यह अधिकार उसे मिलना ही चाहिए। लेकिन इस शर्त के साथ जो कुछ अन्य प्रश्न उठाए गए हैं उन पर गौर करना भी जरूरी है। मसलन, इसके चलते औरत की निजी जिंदगी में हस्तक्षेप की बात उठ रही है।
हमें नहीं भूलना चाहिए कि जब समाज औरतों को दबाने के लिए यह कहता था कि यह हमारा निजी या पारिवारिक मामला है तो नारी आंदोलन का जवाब था कि कुछ निजी नहीं होता, सत्तर के दशक में यह नारा दुनियाभर में गूंजा था 'निजी ही राजनीतिक है' (पर्सनल इज पॉलिटिकल) और वह बिल्कुल दुरुस्त बात थी। यदि आज कोई औरत यह कहे कि वह अपनी इच्छा से सती होना चाहती है तो क्या उसकी इस प्रकार की निजता स्वीकार्य हो सकती है? यौन केंद्रित गर्भपात को रोकने के लिए बनाए गए अधिनियम के तहत दक्षिण में गिरफ्तार कुछ महिलाओं के बारे में (जिन्हें अपनी कोख में पल रहे कन्याभ्रूण को खत्म करने के लिए दंडित किया गया था) बोलते हुए एक महिला संगठन के प्रतिनिधि ने रेखांकित किया था, चूंकि परिवार में औरत का कोई अधिकार नहीं है, इसलिए ऐसे मामलों में स्त्री पर नहीं बल्कि परिवार के दूसरे सदस्यों पर कार्रवाई होनी चाहिए। उनका कहने का तात्पर्य था औरत को इस बात के लिए मजबूर करने वाले, उस पर दबाव डालने वाले परिवार के अन्य सदस्यों को दंडित किया जाना चाहिए क्योंकि परिवार में स्त्री की राय की कोई अहमियत नहीं होती।
कल्पना करें कि सरकारी प्रस्ताव के तहत गर्भवती होने का पंजीकरण होता है तो ऐसे मामलों में चुपचाप गर्भपात होने की स्थिति में परिवार के अन्य सदस्यों की जवाबदेही भी बनेगी। हमारे देश में एक और बड़ी समस्या अभी तक बनी हुई है : गर्भसंबंधी कारणों से औरत की मृत्यु। आंकड़े बताते हैं कि एक लाख के आसपास की संख्या में महिलाएं हर साल गर्भ संबंधी बीमारियों के कारण मर जाती हैं। इस समस्या की जब चर्चा होती है तब सभी संगठनों की ओर से लगातार यह मांग उठाई जाती है कि जांच डॉक्टर की देखरेख में हो, तो स्त्री की जान को कम से कम खतरा हो सकता है। हम अंदाजा लगा सकते हैं कि हमारे यहां अधिक से अधिक 15 से 20 फीसदी स्त्रियां सरकारी या निजी अस्पतालों में प्रसूति के लिए जाती होंगी। अगर पंजीकरण होगा तो सरकार की भी यह जिम्मेदारी बनेगी कि वह उसकी निगरानी में या विशेषज्ञ चिकित्सकों की सुविधा प्रसूति के दौरान उपलब्ध कराए।
गर्भधारण के पंजीकरण का विरोध करने वालों की ओर से यह भी कहा गया है कि लिंगानुपात को ठीक करने के लिए लोगों को शिक्षित करना चाहिए तथा समाज में स्त्री-पुरुष भेदभाव को खत्म करने पर जोर देना चाहिए। अब जहां तक शिक्षित करने का सवाल है तो लगातार रिपोर्टें आई हैं कि गर्भ परीक्षण के जरिए लिंग की जांच कर कन्या भ्रूण को खत्म करने का सिलसिला अमीर तथा शिक्षित वर्ग में ही अधिक हो रहा है।
कई विकसित देशों में गर्भ ठहरते ही दोनों जीवनसाथी का प्रशिक्षण/काउंसिलिंग तथा मेडिकल देखरेख शुरू हो जाता है, जिसमें औरत की सेहत के साथ खिलवाड़ की संभावना कम रहती है। यह उस पर निर्भर करता है कि वह चाहे तो गर्भपात कराए और चाहे तो उसे पैदा करे। पंजीकरण से गर्भपात के अधिकार को छीने जाने की बात को अनिवार्यत: जोड़कर नहीं देखना चाहिए। यह जरूर है कि इस फैसले की आड़ में औरत से उसका गर्भपात का अधिकार छीनने का प्रयास होगा क्योंकि हमारा समाज कोई भी ऐसा मौका हाथ से नहीं निकलने देता, जिसमें औरत को कमतर बनाया जा सके। लेकिन हमें सतर्क रहकर उसका प्रतिरोध करना होगा।