Tuesday, July 30, 2013

थाली में बंटती मौत

‘मिड-डे मील’ का कहर  

बिहार: 23 मौतें, उत्तराखंड: 25 बीमार, हरियाणा: 301 बीमार, मध्यप्रदेश: 33 बीमार, गोवा: 19 बीमार, उड़ीसा: भोजन में कीड़ा, महाराष्ट्र: 87 बोतल टॉनिक एक्सपायर्ड, महाराष्ट्र: अकोला 67 छात्राएं बीमार। 

मिड डे मील की सचाई

बिहार में मिड डे मील की थाली में बंटी मौत के जहर ने देश को हिला कर रख दिया। अभी उस घटना पर क्रोध में लिपटी प्रतिक्रियाओं का दौर जारी ही था कि देश के अन्य कई राज्यों से मिड डे मील संबंधी सरकारी तंत्र में लगे दीमक का खुलासा होने लगा। उत्तराखंड में महाप्रलय से बचे-खुचे नौनिहाल थाली के जहर का शिकार होने लगे और 25 बच्चे अस्पताल पहुंच गए। फिर, हरियाणा 301 स्कूली बच्चे मिड डे मील के बाद दी जाने वाली स्वास्थ्यवद्र्धक गोलियों से अस्वस्थ हो गए। यह सिललिला थमा नहीं और मध्यप्रदेश के बालाघाट में 33 बच्चे जहरीले भोजन का शिकार हो अस्पताल पहुंच गए, फिर गोवा में 19 छात्र बीमार पड़े। उड़ीसा में दोपहर के भोजन में कीड़ा मिला, तो झटपट वितरण रोका गया। ताजा घटना महाराष्ट्र के अकोला की है, जहां 67 छात्राएं खाना खाकर बीमार पड़ गईं, जिनमें 20 की हालत गंभीर है।
कुल मिलाकर देशभर में सैकड़ों बच्चे ‘मिड-डे मील’ का शिकार रहे हैं, लेकिन न तो शासन-प्रशासन को फर्क पड़ रहा है, न ही केंद्र या राज्य सरकारें इसके प्रति गंभीर हैं। सभी राजनीति· दल अपने-अपने तईं खुद की या फिर अपने नेताओं की मार्केटिंग में व्यस्त हैं, न तो किसी को देश की जनता से सरोकार है, न ही ‘मिड-डे मील’ की आड़ में ‘जहर-खुरानी’ का! उन्हें तो बस हाय धुन ‘धन’, हाय धुन ‘वोट’ और हाय धुन ‘कुर्सी’ से मतलब है। कोई देश की गरीब आबादी को 5 रुपये में, तो कोई 12 और कोई 33 रुपये में भर पेट भोजन कराने जैसा मजाक कर रहा है। पहले इक्का-दुक्का नेता मानसिक दिवालिएपन का शिकार लगते थे, अब ज्यादातर ऐसे हैं, जिनका मानसिक स्तर उनके उद्बोधनों से स्पष्ट हो जाता है। जनता के बीच से निकले, जनता द्वारा चुने गए ये जनार्दन कब दावानल बन गए समझ ही नहीं आया और जनता है कि मूकदर्शक बन इन नेताओं की ठिठोली आत्मसात कर रही है। अब तो लोग भ्रमित होने लगे हैं कि चुनाव आने पर वोट किसे देंगे, क्योंकि सस्ता भोजन, जहरीली थाली किसी एक राजनीतिक दल या सरकार की थाती नहीं रही! लोगों को यह भान भी नहीं होगा कि वह किस कदर इन सत्ता लोलुप नेताओं के चंगुल में फंसकर अपना एक मौका (वोट देने का) बेवजह और आसानी से गंवा देते हैं।
अब कहें भी, तो कैसे कहें कि ‘जागो इंडिया, जागो’, क्योंकि दिन चढ़े घंटों हो गए, जनता को लगता है कि यह भोर की नींद है, सो वह नेताओं के दिखाए दिग्भ्रमित करने वाली सुंदर, लुभावनी, सजीली व सपनीली दुनिया में गहरी निद्रा में लिप्त है। 
सर्वेश पाठक