Thursday, July 8, 2010

‘बंद, मतलब बंद!’

कमरतोड़ महंगाई से जनता बेहाल है, लेकिन सरकार को जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा है। हाल ही, में विपक्ष ने भारत बंद किया, कई जगहों पर यह सफल भी रहा, खासकर मुंबई में! लेकिन, इस शहर की फिजा कुछ अलग ही है, जहां हर खबर अपना असर जरूर दिखाती है। यहीं हाल, बंद की खबर का रहा।


यहां बंद बेहद कारगर रहा, खासकर टैक्सियां-ऑटो के चक्के तो रात में ही बंद हो गए। बंद विपक्ष का था, यहां शिवसेना ने कहा ‘बंद, मतलब बंद!’, इस पर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने भी अपनी सहमति की मुहर लगा दी। फिर क्या था, जब बंद को दो-दो सेनाओं का बल प्राप्त हो जाए, तो फिर किसकी हिम्मत है, जो फैसले पर विरोध जताए। कौन रणबांकुरा है, जो समझाने की कोशिश करे, कि जनाब! महंगाई रोकने के लिए बंद की बजाय अन्य पहलुओं पर भी विचार किया जा सकता है। लेकिन, नहीं! सुझाव तो दूर, अगर आपात परिस्थिति में भी कोई नजर आ गया, तो वाहन के साथ-साथ अपने भी हाथ पैर तुड़वाने को तैयार रहे।

इतना ही नहीं, बंद समर्थकों को तो बस विरोध दर्शाना था, कुछ टीवी चैनलों को फोन घुमाया, फिर कुछ मिनटों के लिए लोकल ट्रेनें रोकीं, विजुएलिटी हुई। इसके बाद फोटो खिंचवाए और चल पड़े अखबारों के दफ्तर, ताकि अगले दिन बंद की गूंज अखबारों के मार्फत घर-घर ही नहीं, देश भर में गूंजे और गली मुहल्लों के नेता भी अपनी पार्टी प्रमुख की नजर में आ आगामी चुनाव के लिए अपना अनुभवी डाटा तैयार कर लिए। ये तो ऐसे बहाने हैं, जिनमें शहर की रफ्तार रोककर बोलते हैं, जनता समर्थन कर रही है। ये कौन बताए कि जनता को आंदोलन नहीं महंगाई पर लगाम चाहिए!