Sunday, January 13, 2008

Can i use 'हिन्दी'..!

जी हाँ, शायद ये ही उपयुक्त 'शीर्षक' होना चाहिए. क्योंकि, आजकल हर कहीं हमारी राष्ट्र भाषा को अपमानित होना पड़ रहा है और इसके लिए कोई और नही हम खुद ही जिम्मेदार हैं.
कुछ महीने पहले मुझे एक सुविख्यात मीडिया हाऊस में साक्षात्कार के लिए जाना पडा. खास बात यह थी कि वहां हिन्दी पत्रकारिता से ही जुड़ कर काम करना था. लेकिन, साक्षात्कार की शुरुआत से लेकर नियुक्ति तक सारी औपचारिकताएं इंग्लिश में ही हुई और कई बार मुझे हिन्दी बोलने से पहले अनुमति लेनी पडी.
ये तो हुई मेरी बात, लेकिन समस्या तो हमारी राष्ट्र भाषा की खोई हुई अहमियत की है. इन दिनों मै मुम्बई में हूँ और इस महानगर की खासियत ये है, कि यहाँ की १.५ करोड़ से ज्यादा की आबादी में ५५ लाख से अधिक लोग हिन्दी भाषी हैं. इसके बावजूद यहाँ हिन्दी बोलने वाले को हिकारत भरी निगाहों से देखा जाता है, मानों वह हिन्दी बोलकर कोई बहुत बड़ा अपराध कर रहा हो. यहाँ हिन्दी को चौथे दर्जे की भाषा माना जाता है, इतना ही नहीं यहाँ मराठी भाषा भी दूसरे दर्जे में शामिल है और कुल मिलाकर आजादी के ६० साल बाद भी यहाँ इंग्लिश ही पहले नंबर की भाषा के तौर पर जानी जाती है. यहाँ भाषाओं में तीसरा नंबर गुजराती का है और हिन्दी सबसे ज्यादा उपेक्षित है.
चलिए, अब आपको यह भी बताते चलें, कि हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाने में किन महापुरुषों का योगदान रहा. तो जनाब, पहली बार हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाने का प्रस्ताव कलकत्ता के कांग्रेस सम्मेलन में रखा गया, जिसके अध्यक्ष लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक थे और आज तिलक जी के ही प्रांत महाराष्ट्र में उनके ही अनुयायी हिन्दी भाषियों से सर्वाधिक नफरत करते हैं और ये नफरत यदा कदा जगजाहिर भी होती रहती है. तिलक जी के अलावा जिस महात्मा ने हिन्दी को बढावा दिया, उसे हमारा राष्ट्र ही नही, बल्कि समूचा विश्व गांधी जी के नाम से जानता है. महात्मा गांधी एक गुजराती थे और उन्होने सोचा भी नही होगा, कि उनकी इस प्रिय राष्ट्र भाषा का इतना बुरा हश्र होने वाला है.