सर्वेश पाठक
इन दिनों हर कहीं स्वाइन फ्लू प्रमुख विषय है चर्चा का! करीब तीन महीने हो गए जब इसकी चर्चा शुरू हुई, अब यह कई देशों की सैर करते हुए भारत में कई प्रदेशों तक अपनी जड़े फैला चुका है।
इसी बीच, बीते दिनों मुम्बई में आया गोविंदा (दही हंडी महोत्सव) और बहा ले गया स्वाइन फ्लू के ज्वार को... हमें भी मौका मिल गया लिखने को! हर चैनल, हर अखबार, जहां देखों स्वाइन फ्लू ही स्वाइन फ्लू था। जैसे ही यहां गोविंदा निकले खबरों में छा गए, फिर स्वतंत्रता दिवस और अब अन्य खबरें... स्वाइन फ्लू पहुंच गया, तीसरे पायदान पर... पुणे और बंगलोर के बाद मुम्बई ही सबसे करीब है स्वाइन फ्लू के, लेकिन जब यहां एयरपोर्ट पर विदेशी यात्री आ रहे थे, तो किसी ने उन्हें रोकने और एहतियात बरतने की सजगता नहीं अपनाई, जब संक्रमण फैला, तो लगे सतर्कता बरतने।
अगर कोशिश की गई होती और यात्रियों को एयरपोर्ट पर रोक कर जांच पड़ताल, इलाज आदि किया होता अथवा उन्हें एयरपोर्ट से ही वापस भेजा होता (नियमों का हवाला देते हुए, जैसा कि विदेशी धरती पर भारतीयों के साथ होता है), तो शायद स्थिति इतनी भयावह नहीं होती। लेकिन, उस समय तो हर कोई यह कहता था कि ऐसी बीमारी यहां नहीं फैल सकती और अब यह देश के कोने कोने तक जा चुकी है। अब सतर्कता ही बचाव है, चाहे वह बाबा रामदेव की गिलोय हो या अन्य डॉक्टरों, हकीमों व वैद्यों के उपाय, इन्हें अपनाकर ही स्वाइन फ्लू को रोका या मिटाया जा सकता है।
Monday, August 17, 2009
Subscribe to:
Posts (Atom)