Saturday, May 2, 2009

रिसेशन, इलेक्शन और मीडिया का सेलिब्रेशन

बीते कुछ माह से हर कहीं रिसेशन यानी मंदी की मार हर आमोखास पर पड़ रही है, जिसमें मीडिया भी शामिल है। कुछ तो मंदी की हकीकत, कुछ मंदी के बहाने मीडिया हाउसेस द्वारा पत्रकारों को उनकी औकात बताने की हकीकत! कुल मिलाकर मंदी में व्यापारियों के चेहरों पर तो मुर्दनी छाई ही है, लेकिन नौकरी पेशा लोगों के चेहरे भी हरियाली नहीं जता पा रहे...इन सबमें सबसे कमजोर कोई दिख रहा है, तो वह पत्रकार, शायद ऐसा भी हो सकता है कि अपनी बीमारी हर इंसान को घातक लगती है।
मंदी तो है, आंशिक या अत्यधिक, जो भी हो... रिसेशन के बीच इलेक्शन आया, तो हर किसी के मुनाफे की बयार बह निकली। इस रेस में भी मीडिया पीछे नहीं रही, पहले ही पत्रकारों को रिसेशन का भूत दिखाकर डरा चुके मीडिया घरानों ने नेताओं को डराया, या यूं कहें कि पोलाइट भाषा में बताया कि आप हमारे शरणागत हो जाओ॥ जीत की भविष्यवाणी हम करेंगे। कुछ जगहों पर 'जय होÓ और 'भय होÓ एक साथ गूंजा, दूसरे शब्दों में मीडिया ने भी 'भय होÓ के बहाने नेताओं और पार्टियों की 'जय होÓ की और बदले में पाई मोटी रकम।
... तो अब कैसे कहें कि रिसेशन है, हमें तो यही लगता है कि यह रिसेशन सिर्फ कमजोरों के लिए है, मीडिया प्रबंधनों के लिए मजबूती के साथ यह रिसेशन बलशाली भी है, क्योंकि यह तो मुनाफा ही दे रहा है। एक ओर मंदी का भय दिखाकर पत्रकारों को निकालो, तो दूसरी ओर अपनी ताकत दिखाकर नेताओं की फोटो और समाचार निकालो...
अब भइया, लोग तो कहते हैं कि लालू ही मैनेजमेंट गुरू हैं, जो घाटे की रेल को मुनाफे की पटरी पर ले आए.. लेकिन मेरा तो मानना है कि गुरू गुड़ ही रह गए और मैनेजमेंट फंडा सीखकर मीडिया हाउसेस चीनी हो गए.. और हों भी क्यों न रिसेशन सबके लिए एक जैसा तो हो नहीं सकता.. आखिर कोई तो इसे सेलिब्रेशन में बदलेगा ही, फिर अपने को तुर्रम समझने वाले पत्रकार ना सही, उनके ऊपर विराजमान उनके मालिक ही सही...!