पुलित्ज़र ने जब पीत पत्रकारिता की नीव डाली होगी तो, ये नहीं सोचा होगा कि आज के दौर में यह इतनी डिमांडेबल और विवादास्पद हो जाएगी।
अब चर्चा करते हैं पीत पत्रकारिता यानी येलो जर्नालिज्म की, पहले इन्हें सिर्फ भंडाफोड़ या पोल खोल कहा जाता था। न्यूज टीवी के आने के बाद इन्हें स्टिंग ऑपरेशन कहा जाने लगा और देखिए कि इनकी मार भी बिच्छु के जहरीले डंक से कम साबित नहीं हुई। देश के साठ साल के इतिहास में इतने भंडाफोड़ नहीं हुए होंगे, जितने अब एक महीने में हो जाते हैं। स्टिंग ऑपरेशन अब टीवी जर्नलिजम की जान बन गए हैं और उनके निशाने पर माफिया, नेता और अफसरशाह ही नहीं हैं, आम लोग भी हैं।
लेकिन बहुत से लोगों को अब लगने लगा है कि बात जरूरत से आगे बढ़ रही है। खास तौर से उमा खुराना के मामले के बाद उन सवालों की अनदेखी करना नामुमकिन हो गया है, जो इधर कुछ अरसे से उठने लगे थे। कुल मिलाकर इन दिनों सबसे ज्यादा जोर स्टिंग ऑपरेशन का है, ऐसे में क्या औचित्य है इन स्टिंग ऑपरेशन का...! आपके सुझाव भी आमंत्रित हैं...?