
इन्हीं में एक हैं राज ठाकरे और उनकी पार्टी महाराष्टï्र नवनिर्माण सेना यानी एमएनएस! यूं तो राज ठाकरे लोकसभा चुनाव प्रचार कर रहे हैं, लेकिन वे मराठी मुद्दे को जिंदा रखे हुए हैं और उन्हें शायद बेहतर पता है कि सिर्फ इसी मुद्दे को भुनाकर वे राज्य विधानसभा चुनावों में अपना धरातल मजबूत कर सकते हैं। शायद आदर्श आचार संहिता को ध्यान मेें रखकर वे फिलहाल खामोशी के साथ ही सही, लेकिन यह बोलने से नहीं चूक रहे हैं कि चुनाव बाद उनकी सेना का आंदोलन तेज होगा और वह भी मराठी हित में... अब यह तो मराठी भी बेहतर जानते होंगे और जिनके खिलाफ यह आंदोलन शुरू होगा, वह भी काफी गहराई से जानते होंगे कि आम चुनाव बीतने के बाद क्या हो सकता है।
सच तो यह है कि सामाजिक जागरुकता की कमी का फायदा ये नेता बखूबी उठाना जानते हैं और भोली भाली जनता की उसी कमजोर नस पर उंगली रखते हैं, जहां से इन्हें राजनीतिक लाभ मिल सके। यह जानते तो सभी हैं, लेकिन राजनेताओं की लच्छेदार भाषा में हर कोई उलझ जाता है, फिर राज ठाकरे जैसे लोग इसका फायदा क्यों न उठाएं?