Wednesday, November 25, 2009

26/11... नमन या जश्न!

26/11 की बरसी है! लेकिन, यहां नमन की जगह जश्न जैसा रूप दिया जा रहा है 26/11 की घटना को! अटपटा जरूर लगता है, पर मीडिया पूरे जी जान से जुटा है 26/11 की घटना के जख्मों को कुरेदने के बहाने अपने अपने स्तर पर दर्शकों, श्रोताओं और पाठकों को रिझाने में! जिसे देखो, जहां देखो, वहीं 26/11 का राग अलाप रहा है, शायद ही कुछ लोग होंगे, जो सही मायने में शहीदों को याद कर तहेदिल से नम होंगे। बाकी तो बस... जुटे हुए है अपनी अपनी भुनाने में, कैसे करें, क्या करें कि सबका फोकस हमारी ओर हो जाए, हद तो तब हो गई है, जब शहीद पुलिस अधिकारियों की विधवाएं भी मीडिया में छाए रहने को आतुर दिख रही हैं।
कसाब को जिंदा पकडऩे के चक्कर जान गंवाने वाले शहीद तुकाराम ओंबले की लड़की वैशाली को बीते दिनों एक स्कूल ने तीन लाख रुपए की सहायता राशि दी, पर उसने राशि लौटाते हुए अनुरोध किया कि यह रकम जरूरतमंद बच्चों के कल्याणार्थ इस्तेमाल की जाए। वहीं, कुछ शहीद पुलिस अधिकारियों की विधवाएं हाल ही में दिल्ली जाकर सोनिया गांधी से मिलीं और उन्हें याद दिलाया कि उनके परिवार को पेट्रोल पंप दिए जाने का वादा किया गया है। श्रीमती गांधी ने भी आनन फानन में तत्काल पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा को फोन कर शहीदों की विधवाओं को पेट्रोल पंप देने को कहा, साथ ही अन्य सहायता का भी आश्वासन दिया। जबकि, इन विधवाओं के सहायतार्थ हर महीने एक बड़ी रकम दी जाती है। इतना ही नहीं, इनमें एक शहीद की विधवा की डायरी आगामी 5-6 महीनों तक विविध आयोजनों के लिए व्यस्त कार्यक्रमों से भरी पड़ी है। ये विधवाएं जहां तहां कार्यक्रमों में मुम्बई पुलिस को कोसती नजर आ जाती हैं, पर कोई इनसे यह नहीं पूछता कि उसी प्रशासन मेें इनके पति भी तो थे और वे भी उतने ही जिम्मेदार थे, जितना मुम्बई पुलिस का आम सिपाही! मुम्बईकरों या देशवासियों को शहीद अधिकारियों की विश्वसनीयता या शहादत पर संदेह नहीं, पर एक प्रश्न सहज ही बार बार उठता है कि तीन आला अधिकारी एक साथ एक गाड़ी में कैसे घूम रहे थे, यह संयोग भी कैसे बन गया और आतंकवादी बिना जोखिम कैसे इतने तेज तर्रार पुलिसवालों को शहीद बना डाले? शहादत के बाद इस तरह की बातें अनुचित जरूर है, पर क्या वे विधवाएं भावनाहीन हो गई हैं, जिन्हें पति की शहादत पर पेट्रोलपंप चाहिए?

6 comments:

कौशलेंद्र मिश्र said...

sahi prasn uthaya hai. 26/11 ki ghatnao pr vichar karte huye ground reality ko nahi bhulna chahiye.

कौशलेंद्र मिश्र said...

sahi prasn uthaya hai. 26/11 ki ghatnao pr vichar karte huye ground reality ko nahi bhulna chahiye.

pradeep said...

hamesha janata hi tyagki misal kyo pesh kare. sarkare kyo nahi zabazi ka parichay deti.

pradeep said...

hamesha janata hi kyo tyag ki misal pesh kare. sarkare zabazi ka parichay kab dengi.

चण्डीदत्त शुक्ल said...

जो लोग लालची हैं, उनकी भर्त्सना होनी चाहिए, लेकिन हमें ज़रूरत और लोभ का अंतर पहचानना और विश्लेषण भी करना होगा. सुंदर आलेख.

अरुणेश मिश्र said...

नयी पोस्ट डालें ।